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नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे ।
बटुकायेति विज्ञेयं महापातकनाशनम् ॥ ७॥
साधक कुबेर के जीवन की तरह जीता है और हर जगह विजयी होता है। साधक चिंताओं, दुर्घटनाओं और बीमारियों से मुक्त जीवन जीता है।
हाकिनी पुत्रकः पातु दारांस्तु get more info लाकिनी सुतः।।
इति श्रीहरिकृष्णविनिर्मिते बृहज्ज्योतिषार्णवे धर्मस्कन्धे
हंसबीजं पातु हृदि सोऽहं रक्षतु पादयोः ॥ १९॥
संहारभैरवः पातु मूलाधारं च सर्वदा ॥ १८॥
धारयेत्पाठयेद्धपि संपठेद्वापि नित्यशः।।
कालाष्टमी के दिन करें बटुक भैरव कवच का पाठ, मनचाही सिद्धियों की होती है प्राप्ति
ध्यायेन्नीलाद्रिकान्तं शशिशकलधरं मुण्डमालं महेशं
ॐ सहस्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः।